21 जनवरी 2010

इसे पढकर निंदा करना छोड़ देंगे

किसी चीज़ को जब हम जान जाते हैं तो उसके भय से दबाब से बाहर आ जाते हैं
विज्ञान ने प्रकृति के जिन जिन रहस्यों को जान लिया ,वहा उनका उपयोग करना सीख
गया या कहें उनके ऊपर विज्ञान का कब्जा हो गया .
आज इसी जानने के स्वभाव के कारण से विज्ञान ने कितनी चीज़ों पर कब्जा कर लिया है.
निंदा को थोड़ा जानकार देखें .
निंदा अर्थात दूसरे की बुराई ,कितना रस होता है ना
हमने बचपन से सुना है कि निंदा करना , सुनना अच्छी बात नहीं है मानस मे भी आया है
''पर निंदा सम खग न गरीसा'' -दूसरे की निंदा के समान कोई पाप नहीं है .
पर फिर भी निंदा मे से रस जाता नहीं .
इसे समझने के लिए एक कहानी की ओर चलते है
अकबर ने एक लकीर खींच कर कहा की बिना इसे मिटाए क्या कोई इस लकीर को
बड़ा कर सकता है ,
किसी की समझ मे नहीं आया तब बीरबल को बुलाया गया
बीरबल ने एक छोटी लकीर उस ललीर के साथ खींच दी
बस इतने से ही पहली लकीर बड़ी को गई
जब हम किसी की निंदा करते हैं तो हम बस दूसरे व्यक्ति की लकीर को छोटा करते हैं .
इससे हमारे अहम की लकीर हमे बिना प्रयास के बड़ी मालूम देती है .
हर व्यक्ति अपने को दूसरों से श्रेस्ठ मानता है . निंदा करते ही दूसरे के मुकाबले मे अपनी लकीर
बड़ी दिखाई देती , बस यही निंदा का रस है .
पर यह खतरनाक है क्योंकि झूठा अहम बढता है.
और अहंकारी का पतन हो जाता है.

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